Posted on जून 9, 2009 by डा. राष्ट्रप्रेमी
रो-रो के बुरा हाल था मीना का एक यही तो साधन था उसके पास अपने अन्त:करण से अपनी पीड़ा को निकालने का। अपने बोझ को हल्का करने का। दिन में तो इसके लिये भी समय नहीं था। पूरे दिन काम ही काम। सुबह तीन बजे उठना पूरे दिन काम करते रहना रात्रि 11 बजे तक काम करना । इस समय सब सो जाते थे। अत: रो-रोकर अपनी पीड़ा को हल्की करती और सो जाती यह उसकी प्रतिदिन की दिनचर्या बन गयी थी।
मीना काम से नहीं डरती थी काम तो कितना भी करना पड़े किन्तु थोड़ा सा प्यार तो मिले। फिर भी शरीर के लिये भोजन और विश्राम तो चाहिये ही। भोजन के नाम पर दोपहर दो बजे, बची खुची तीन चार रोटी सब्जी तो कभी बचती ही न थी तथा रात्रि को साढ़े दस बजे बची खुची एक दो रोटी। विश्राम के नाम पर 20 घण्टे काम करना तथा बात बात पर सभी की डाँट। माताजी (सास) तो सदैव डाँटती रहती है बड़ी धीरे-2 काम कर रही है तुझे महारानी की तरह बिठालूँगी तेरे बाप ने तेरे लिये बहुत सारा धन जो दिया है।
मीना के सभी सुनहले सपने चूर-चूर हो गये पिता की गरीबी के कारण। दहेज न लाने पर ही तो उसे इतना सताया जाता है। आखिर उसकी देवरानी भी तो है उसको कोई नहीं डाँटता उससे कोई नहीं कहता काम करने की। आखिर वह अपने माय के से दहेज जो लायी है। पूरे दिन सज धज कर घूमती रहती है व्यक्तिगत काम भी उसी से करवाती है। पिताजी ने दहेज नहीं दिया तो क्या गलती है आखिर मीना की। कितने परिश्रम से पढ़ाई की उसने। कितना प्रयास करती है अपने सास ससुर को प्रसन्न करने का। किन्तु वह तो दहेज के नाम पर डाँटते रहते हैं। क्या उपाय है इससे बचने का? क्या चारा है? सभी कुछ समाप्त हो गये सपने। एक ही उपाय बचा है करने के लिये आत्महत्या !
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Posted on जून 9, 2009 by डा. राष्ट्रप्रेमी
अभागी देवी
आज जगदेव पूरी तरह निराश हो गया था। उसने सारे मुकदमों के कागजातों को फाड़कर हीटर पर डाल दिया। उसे धैर्य का बांध टूट चुका था। उसकी पत्नी रमा अन्दर बैठी रो रही थी। अभी मुिश्कल से पाँच वशZ ही तो हुए होंगे शशी की शादी को। शशी रमा के एकमात्र पुत्री थी। उसके एक भाई था दिलीप, वह शशी से छोटा था। शशी को अपने माता एवं पिता का अपार प्यार मिला था। शशी के पिता ने शशी की शशी की शादी पर क्या नहीं दिया था ? शशी की शादी में अपना सारा धन खर्च कर दिया था। अपनी पुत्री की खुशी के लिये। वे यह नहीं जानते थे कि दहेज दहेज की भूख कभी शान्त नहीं होती।
शशी जब पहली बार ससुराल से आयी तभी उसे कोई प्रसन्न नहीं देख पाया इसका एकमात्र कारण था शशी की उपेक्षा। ससुराल से दस हजार रूपये की माँग की थी। जगदेव ने शशी की खुशी का ख्याल रखकर कर्ज लेकर ससुराल की माँग पूरी की तथा उसे ससुराल विदा किया। किन्तु ससुराल में उसे फिर भी प्यार नहीं मिला । छह महीने बाद शशी के हाथ द्वारा लिखा पत्र आया कि यहाँ पर मुझे बहुत परेशान किया जा रहा है। मुझ से यह पत्र जबरदस्ती लिखवाया जा रहा है कि मैैं मोटर साइकिल की माँग करूँ। इसके बाद पाँच पत्र और आये तरह-तरह की धमकियाँ भरे। और छठंवा पत्र आया था शशी के पति द्वारा लिखित जिसमें शशी की मौत की सूचना दी थी। सूचना शशी की लाश जलाने के बाद दी गयी थी। बताया गया था कि उसने फाँसी लगाकर आत्म हत्या कर ली।
जगदेव ने वहाँ जाकर सारा वाकया जानना चाहा तो पड़ोसियों ने बताया कि शशी ने बहुत शोर मचाया था किन्तु उन्हें उसके पास तक शशी के ससुर ने नहीं जाने दिया था। मामला स्पश्ट आत्महत्या का न होकर हत्या का था। किन्तु कोई गवाह तैयार नहीं था। जगदेव ने पूरे चार साल तक मुकदमा लड़ा किन्तु न्याय नहीं मिला। आज उसका धैर्य टूट चुका था। उसके हृदय से एक ही बात निकल रही थी कि क्यों ? जन्म लेती है भारत में अभागी देवी ! क्यों यहाँ के देवताओं में समझ नहीं आता? देवियों के बिना इनका अस्तित्व संभव ही नहीं है। क्यों देवियों को उनकी पैतृक सम्पत्ति में अधिकार नही दिया जाता ताकि उनको किसी दान-दहेज की आवश्यकता ही न रहे और उन्हें किसी को दान में दिये जाने वाली वस्तु न बनना पड़े।
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