दहेज-पहला पति
रमेश कार्यालय में काम करते-करते थक गया था। थकान भी स्वभाविक एवं नियमित होने वाली थी क्योंकि कार्यालय की आठ घन्टे की डयूटी थकान तो पैदा करेगी ही।
रमेश ने अपने दरवाजे पर आते ही घन्टी बजायी। वह काफी समय प्रतीक्षा करता रहा किन्तु अन्दर से कोई हलचल नहीं हुई। पुन: घन्टी बजाने पर उमा ने कहा, `पिछला दरवाजा खुला है, पीछे होकर आ जाओ। रमेश पीछे के दरवाजे में से होकर अन्दर पहुँचा तो उमा पलंग पर लेटी-2 पत्रिका पढ़ने में मशगूल थी मानो उसे रमेश के आने की जानकारी ही न हो।
रमेश ने कपड़े उतारे, जूतों के तस्मे खोलकर जूते उतार दिये एवं कपड़े पहनने के लिये कपड़े खोजकर बाथरूम में घुस गया। कपड़े बदलने के बाद पानी पीकर उमा के पास पहुँचा तो उसे देखकर उमा ने कहा, किचिन में खाना रखा है जाकर खालो। वह चुपचाप खाना खाने चला गया।
रमेश व उमा की शादी लगभग दो वर्ष पूर्व दिसम्बर में हुई थी। उमा के पिता ने रमेश के पिताजी को एक लाख रूपये नकद एवं अन्य भौतिक सुख-सुविधा का सामान दिया था। शादी के बाद से ही उमा ने कभी भी रमेश को महत्व नहीं दिया । प्रारम्भ में तो रमेश ने उमा की उदासीनता को उसका संकोच समझा था कि उसकी पत्नी का पहला पति होकर वह न होकर उसके पिता द्वारा दिया गया दहेज है।
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