सन्तोषी सदा सुखी
एक मुकुन्दपुर नाम का एक गाँव था। गाँव के पास ही एक कच्ची सड़क थी वह सड़क ही मुख्यत: वहाँ से आने जाने का एक साधन थी। उसी गाव में राधा नाम की एक औरत रहती थी, बेचारी के एक बेटा था। वह दिन भर कड़ा परिश्रम करती तब जाकर खाने पीने की व्यवस्था कर पाती। खाने-पीने के बाद धन बचाकर बच्चे की पढ़ाई में लगा देती। इसी प्रकार मेहनत करके उसने अपने बेटे को हाईस्कूल करा दिया था। उसके बेटे का नाम था रमेश। रमेश भी पढ़ने में मेहनती था अत: वह चाहती थी कि उसका बेटा खूब पढ़े और एक बड़ा आदमी बने।रमेश को पढ़ाने के लिये राधा ने और अधिक काम करना प्रारम्भ किया और जैसे तैसे रमेश को पढ़ने के लिये शहर भेज दिया। रमेश शहर में जाकर कालेज में पढ़ने लगा। उसकी माँ महीने के महीने पैसे भेज देती। इसी प्रकार रमेश ने बी.ए. किया और एक दिन उसकी नौकरी भी लग गयी।राधा को जब यह पता लगा रमेश की नौकरी लग गयी है उसकी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। अब उसके सपने पूरे होने का समय जो आया था। वह सोच रही थी कि अपने बेटे की धूमधाम से शादी करेगी। घर में एक बहू आयेगी तो उसे भी कुछ आराम मिलेगा।
राधा एक दिन बैठी पड़ोसिन से बातें कर रही थी कि उसका बेटा कितना अच्छा है? नौकरी लग गयी है———आदि। उसी समय डाकिया ने उसको एक पत्र दिया जो रमेश का ही था उसमें लिखा था, “माँ मैनें अपने साथ की एक खूबसूरत लड़की से शादी कर ली है।´´ तुम इस बारे में न सोचना। पत्र पढ़ते-2 बेचारी राधा का तो दिल ही टूट गया। बुढ्डी हो गयी जिसकी आशा में उसके भी यही हाल। अब तो बेचारी राधा काम करने लायक भी नहीं रही। क्या करेगी वह। वह कई दिन तक अपने घर में बैठी-2 रोती रहती कई दिन तो घर से बाहर भी न निकली। उसके चार-पाँच दिन तो बीत गये बिना कुछ खाये पीये।
एक दिन एक साधू भिक्षा माँगते-2 आया तो उसने बुढ्ढी को रोते हुये देखा। साधू ने राधा से पूछा कि वह क्यों रो रही है तो उसने उसे सारा दुख कह सुनाया। साधू ने कहा, “धीरज रखो रोने से क्या होगा,´´ सन्तोश रखो सन्तोशी सदैव सुखी रहता है। यह कहकर वह चला गया। साधू के चले जाने पर वह गाँव से बाहर सड़क के किनारे झोंपड़ी में रहने लगी। वह वहाँ से गुजरने वालों को पानी पिलाती। कुछ समय बाद वह स्थान ही प्याऊ के नाम से मशहूर हो गयी। उसे सभी प्याऊ वाली अम्मा कहकर पुकारते वह उसे वहीं खाना दे जाते। वह अब सुखी थी चिन्ता मुक्त थी। वह सभी से कहती बेटा “सन्तोषी सदा सुखी
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