Posted on जुलाई 1, 2009 by डा. राष्ट्रप्रेमी
मानसिकता
रामपुर एक छोटा सा कस्बा था। यहाँ प्रतिवर्ष रामलीला होती थी। रामलीला का प्रारम्भ गणेश जी की सवारी निकाल कर ही किया जाता था। इस वर्ष लोगों में अपूर्व उत्साह था। सवारी में कई झाँकियां निकाली जा रहीं थी। सबसे पहले गणेश जी की झाँकी थी, उसके बाद राम लक्ष्मण जानकी सरस्वती माँ एवं अन्य की झाँकियां थीं। सभी दुकानदार दुकानों से बाहर निकल आये थे शोभा यात्रा देखने। स्त्रियाँ भी अपनी-2 छतों पर खड़ी शोभा यात्रा निहार रहीं थी। एक तरफ कुछ तरूण विद्यार्थी खड़े-खड़े शोभा यात्रा देख रहे थे। एक विद्यार्थी ने दूसरे से कहा- देख यार राम-लक्ष्मण की जोड़ी कितनी सुन्दर लग रही है। दूसरे ने कहा- क्या देखता है यार, इस छोकरी को देख जो सरस्वती बनी बैठी है।
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Posted on जुलाई 1, 2009 by डा. राष्ट्रप्रेमी
सीख
वह कक्षा 6 में पढ़ता था। आवासीय विद्यालय होने के कारण छात्रावास में रहना पड़ता था। परिवेश का प्रभाव, वह एक दिन छात्रावास व कक्षाध्यापक की नजरें बचाकर फिल्म देखने शहर चला गया। शांयकालीन उपस्थिति के समय न मिलने पर वार्डन द्वारा खोज-बीन की गयी। वह अपने साथियों सहित रंगे हाथों फिल्म देखते हुए पकड़ा गया। वार्डन ने सभी को रंगे हाथों पकड़ लिया। कार्यवाही हुई, घर भेज दिया गया।
एक सप्ताह बाद जब वापस छात्रावास में आये तो वरिष्ठ छात्रों ने लताड़ा, फटकारा, “अभी तुम कच्चे खिलाड़ी हो। हमसे कुछ सीखो। हम जो भी कहते हैं, तुम्हारे हित में कहते हैं। हमारी मानोगे तो फायदे में रहोगे। फिल्म देखने जाना था तो हमसे पूछकर जाते। हम फिल्म देखते हैं, सिगरेट पीते हैं, कभी-कभी शराब भी पी लेते हैं किन्तु आज तक पकड़े नहीं गये। जब भी फिल्म देखनी हो रात्रि में 9 से 12 का शो देखो।´´
वह बड़े भैया की बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था। दी हुई सीख गाँठ बॉध ली.
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