बिल्ली
मैं शाम को खाना खाने के बाद प्रतिदिन टहलने जाया करता था। उस दिन दो साथी अध्यापक भी मेरे साथ थे, जिनमें से एक चालीस-पैंतालीस वर्षीय समझदार व सहयोगी प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। उनके लड़के भी जवान होने को थे। मैं उनका काफी सम्मान करता था। हम तीनों एक गली में से गुजर रहे थे कि वे अचानक बोल पड़े, बिल्ली।
मैं आस-पास की दीवारों पर देखने लगा किन्तु मुझे बिल्ली कहीं भी दिखाई न दी। उसी समय दूसरे साथी हँस पड़े। वे दोनों हँसे जा रहे थे। मेरी समझ में नहीं आया कि मुझे बिल्ली दिखाई नहीं दी तो वे हँस क्यों रहे हैं? माजरा कुछ और ही था, जो मास्टर जी ने मुझे इशारे से समझाया। सामने से तीन-चार स्त्री-पुरूष आ रहे थे, जिनमें से एक शादी-शुदा लड़की भी थी। मास्टर जी ने उसी को बिल्ली कहा था, उन्होंने यह भी बताया कि वह उनकी पुरानी सहेली है।
मैं मास्टरजी की इस हरकत को देखकर आश्चर्यचकित रह गया। मुझे उनसे यह आशा न थी। वह बेचारी लड़की जिसे उन्होंने बिल्ली कहा था, परेशान-सी सिर झुकाये, दीवार से सटकर निकल गई। मेरे मस्तिष्क में प्रश्न उठा कि शिक्षक ही ऐसी हरकत करते हैं तो किशोरों का क्या दोष?
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