नजरिया
साक्षात्कार के समय प्रबन्धक महोदय ने स्पष्ट कहा था, “हमारे यहाँ ट्यूशन नहीं पढ़ाने देते।´´ और उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया था, क्योंकि वह स्वयं ही ट्यूशन को अच्छा नहीं मानता था। विद्यार्थियों को पूर्ण निष्टा व परिश्रम के साथ पढ़ाना ही उसे पसन्द था।
कार्यभार संभालने के तीसरे दिन उसे प्रधानाचार्य के कार्यालय में बुलाया गया, जहाँ प्रबन्धक, उपप्रबन्धक व सचिव महोदय विराजमान थे। आदेश हुआ, “मास्टर जी, आपको मैनेजर साहब के बच्चों को पढ़ाना है।´´ वह आश्चर्यचकित होकर बोला, “किन्तु सर, आपने ट्यूशन के लिए मना किया था?´´
जबाब प्रबन्धक महोदय ने ही दिया, “ इस विद्यालय के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के लिए मना किया गया था किंतु हमारा बच्चा पानीपत में पब्लिक स्कूल में पढ़ने जाता है।´´
वह हक्का-वक्का रह गया। प्रबन्धक महोदय का नजरिया उसके समझ में नहीं आ रहा था। जब प्रबन्धक महोदय के बच्चे को बीस किलोमीटर दूर प्रतिष्ठित पब्लिक स्कूल में पढ़कर भी ट्यूशन की आवश्यकता पड़ सकती है तो स्थानीय स्कूल के ग्रामीण बच्चों को क्यों उससे बंचित करने का प्रयास किया जाता है?
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