और वह भी फफक-फफक कर रो पड़ी।

ईश्वरी
ईश्वरी घर में घुसा तो सन्नाटा पसरा हुआ देखकर उसे आश्चर्य न हुआ। माँ टूटे झटोले पर पड़ी थी, सोती तो क्या होगी? पिताजी शायद बाहर गए हुए थे। पत्नी अस्त-व्यस्त हालात में छप्पर में बैठी थी। ईश्वरी समझ गया आज फिर माँ और पत्नी में किसी बात पर ठन गई और वह बिना कुछ बोले, भगवान से यह प्रार्थना करता हुआ कि मुझे कोई शिकायत न सुननी पड़े, पशुओं का काम-धाम निपटाया और सोने के लिए चारपाई पर पड़ गया।
ईश्वरी चारपाई पर सोने का बहाना कर रहा था, किन्तु नींद उससे कोसों दूर थी। वह अपने अतीत में पहुँच गया, जब माँ का स्नेह उसके चेहरे पर मलिनता की छाप तक न आने देता था। पिता भी कम स्नेह न करते थे, वे उसकी उचित व अनुचित प्रत्येक प्रकार की इच्छा की पूर्ति करने का प्रयत्न करते। यही नहीं इस लाड़ प्यार की अधिकता के कारण वह कुछ जिद्दी भी हो गया था। उसकी यह जिद माँ-बाप को कुछ न कुछ परेशानियों में भी अवश्य डालती, फिर भी वे उसे प्रसन्न रहने का प्रयत्न करते।
प्रारंभ में तो ईश्वरी ने मौज-मस्ती ही ज्यादा ली। पढ़ने के नाम पर माँ-बाप से झूँठ बोलकर पैसे ऐंठना, रात को पढ़ने के वक्त सिरदर्द का बहाना करके सो जाना उसके लिए आम बात थी। किन्तु वह जल्दी ही सँभल गया जब वह इण्टरमीडिएट की परीक्षाओं में बुरी तरह से पास हुआ। वह मुश्किल से ही उत्तीर्णांक प्राप्त कर सका था, वह भी नकल से। पिताजी ने भी उससे कह दिया था, `तू पढ़ नहीं सकता, अब घर के कामों में लग। ईश्वरी के लिए यह बहुत बड़ा आघात था। उसने परिश्रम करने का संकल्प लिया और पिताजी के इन्कार करने के बाबजूद उच्च शिक्षा हेतु बाहर चला गया। जैसे-तैसे उसे महाविद्यालय में प्रवेश भी मिल गया, और फिर शुरू हुआ उसकी पढ़ाई का सिलसिला। ईश्वरी ने कभी अध्ययन में इतना परिश्रम न किया था, जितना उसने करने की कोशिश की थी, किन्तु वह चाहकर भी कभी प्रथम श्रेणी प्राप्त न कर पाया। इस सबके बाबजूद पिताजी ने कभी उसके लिए पैसे की कमी न आने दी, उसकी पढ़ाई के लिए। माता-पिता ने सभी प्रकार के कष्टो को सहन करते हुए, यहाँ तक कि बीमारी में अपने लिए दवा न लेकर भी, उसके लिए कोई कमी न होने दी। ईश्वरी आज सोचता है, यद्यपि उसने अध्ययन में उसने यथासंभव परिश्रम किया किन्तु पिताजी द्वारा दिए गए धन का मूल्य न समझ सका। उस समय पिताजी से जो भी मिलता उसे नगण्य प्रतीत होता था किन्तु आज जब उसकी नजरों में उस समय की स्थिति का चित्र आता है वह काँप जाता है। काश! वह खर्च होने वाले पैसे का मूल्य समझ पाता.
माँ ने अपना इलाज नहीं करवाया, पिताजी फटे-पुराने कपड़ों को पहनते रहे। दिन-रात परिश्रम किया किन्तु उसे कभी पैसे की कमी महसूस न होने दी। माँ-बाप की कृपा व ईश्वरी की महत्वाकांक्षा ही थी कि ईश्वरी ने स्नातकोत्तर, एम.एड,एल.एल.एम व पी.एच.डी जैसी उच्चतर उपाधियाँ प्राप्त कीं, किन्तु डिग्रीयों से क्या होता है. उसके सारे सपने टूट गए। उसे कोई काम न मिला। उसकी इच्छा थी कि उसे कितना भी परिश्रम करना पड़े किन्तु माँ-बाप को सुख पहुँचा सके। माँ की जिद के कारण ही यह सोचकर शायद माँ को इससे कुछ सुख मिले, उसने शादी करना स्वीकार कर लिया था।
शादी हुए चार वर्ष बीत गए। पत्नी पढ़ी-लिखी व सुन्दर ही मिली। उसके भी अपने अरमान थे। उसके सपने थे कि उच्च शिक्षित हैं, अच्छी सर्विस मिलेगी और वह उनके साथ शहर चली जायेगी जहाँ सुख-सुविधा के सारे साधन उपलब्ध होंगे। किन्तु उसके अरमान जल्दी ही धूल में मिल गए। उसके सामने स्पष्ट हो गया था कि उसे कभी भी अपनी इच्छाएँ पूरी करने का अवसर न मिलेगा। शादी के दो साल बाद ही शुरू हो गया था गृह-क्लेश का सिलसिला। कुछ समय तक तो माँ-बाप ने ईश्वरी से छिपाये रखने का प्रयत्न किया किन्तु धीरे-धीरे ईश्वरी के सामने सब कुछ स्पष्ट होने लगा। पत्नी अपने अरमानों के टूटने से क्षुब्ध थी और वह अपना गुस्सा घर के प्रत्येक सदस्य पर उतारती थी। माँ-बाप ईश्वरी की बेरोजगारी से कम क्षुब्ध न थे किन्तु वे उसकी मजबूरी समझते थे और अब भी अपने स्नेह की छाया से उसे खुश रखने का असफल प्रयत्न करते थे।
ईश्वरी कहाँ-कहाँ नहीं भटका नौकरी के लिए, वह प्रत्येक कार्य करने के लिए तैयार था, यहाँ तक कि मजदूरी भी। किन्तु उसे कोई कार्य नहीं मिला। लोगों की नजरों में मजदूरी का कार्य करने के लिए पढ़े-लिखे उपयुक्त नहीं होते और योग्यता के अनुरूप सर्विस के लिए आवेदन करने पर कहीं नंबर न आता क्योंकि उसके पास न जैक था, न चैक तथा न ही असाधारण शैक्षिक अभिलेख। वह यह सोच-सोच कर कि जिन माता-पिता ने उसके लिए सब कुछ किया, उनके लिए अपने कर्तव्यों की पूर्ति करने में कितना असमर्थ है यही नहीं पत्नी के प्रति नया दायित्व और उत्पन्न हो गया; दिनों-दिन डिप्रेशन का शिकार होता जा रहा था। यही नहीं माँ-बाप व पत्नी का टकराव उसे ऐसे दोराहे पर खड़ा कर देता कि वह न तो इधर जा सकता था, न उधर। कुछ भी न कर पाने की असमर्थता पर, आज वह अपने आँसुओं को रोक न सका। तभी उसकी माँ ने उसके सिर पर हाथ रखा, “बेटा, तू रो रहा है? क्या बात है? मा और बाप के आगे सन्तान को रोने की आवश्यकता नही और वह भी फफक-फफक कर रो पड़ी।

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राष्ट्र के निर्माता शिक्षक या अपराधी?

अपराधी

वह प्रधानाचार्य था। डी.ओ. द्वारा बुलाई गई मीटिंग में भाग लेकर लौटा था। डी.ओ. ने ऐसे सभी विद्यालयों के प्रधानाचार्यो को बुलाया था, जिनमें बोर्ड की परीक्षाओं के सेन्टर थे। डी.ओ. ने उन्हें नकलमुक्त परीक्षाएँ कराने के निर्देश दिए थे।
बैठक से आते ही जैसी कि संभावना थी, प्रधानाचार्य ने अध्यापकों की बैठक बुलाई और चर्चा की कि कैसे हमारे बच्चे शत-प्रतिशत पास हो। इसके लिए आवश्यक है कि सुपरवाइजर्स और सुपरिटेन्डेन्ट को खुश रखा जाए। उसने तीन अध्यापक इस काम के लिए नियोजित किए कि वे सुपरिटेन्डेण्ट व सुपरवाइजर्स को खिला-पिलाकर या अन्य साधनों से प्रसन्न रखें ताकि वे विद्यालय के छात्रों को नकल करने से न रोकें। इसके पश्चात् अध्यापकों को आदेश दिया कि वे अपने-अपने विषय के पेपर वाले दिन विद्यालय में अवश्य उपस्थित रहें ताकि आवश्यकता पड़ने पर छात्रों की सहायता कर सकें। बैठकोपरान्त सभी अध्यापक अपने-अपने कार्यो में व्यस्त हो गए।
किन्तु उसने प्रधानाचार्य से मिलकर स्पष्ट रूप से मना कर दिया कि वह किसी भी कीमत पर नकल नहीं करायेगा। उसका तर्क था कि वह पूर्ण समर्पण, ईमानदारी व निष्टा के साथ पढ़ाता है, वह छात्रों व देश के साथ गद्दारी नहीं कर सकता। प्रधानाचार्य ने निर्देशों का पालन न करने पर सख्त कार्यवाही की चेतावनी दी। यही नहीं उसके अपने निर्णय पर टिके होने के कारण दूसरे दिन ही उसे विद्यालय से निष्कासित कर दिया गया।
वह रास्ते में सोच रहा था, कानून को तोड़ने वालों को अपराधी कहा जाता है। क्या शैक्षिक कानूनों को तोड़कर नकल कराने वाले अध्यापक व प्रधानाचार्य, जो बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, जो राष्ट्र के निर्माता कहे जाते हैं, राष्ट्र को रसातल की ओर ले जा रहे हैं, वास्तव में इन देशद्रोहियों को शिक्षक कहा जाय या अपराधी.