अपराधी
वह प्रधानाचार्य था। डी.ओ. द्वारा बुलाई गई मीटिंग में भाग लेकर लौटा था। डी.ओ. ने ऐसे सभी विद्यालयों के प्रधानाचार्यो को बुलाया था, जिनमें बोर्ड की परीक्षाओं के सेन्टर थे। डी.ओ. ने उन्हें नकलमुक्त परीक्षाएँ कराने के निर्देश दिए थे।
बैठक से आते ही जैसी कि संभावना थी, प्रधानाचार्य ने अध्यापकों की बैठक बुलाई और चर्चा की कि कैसे हमारे बच्चे शत-प्रतिशत पास हो। इसके लिए आवश्यक है कि सुपरवाइजर्स और सुपरिटेन्डेन्ट को खुश रखा जाए। उसने तीन अध्यापक इस काम के लिए नियोजित किए कि वे सुपरिटेन्डेण्ट व सुपरवाइजर्स को खिला-पिलाकर या अन्य साधनों से प्रसन्न रखें ताकि वे विद्यालय के छात्रों को नकल करने से न रोकें। इसके पश्चात् अध्यापकों को आदेश दिया कि वे अपने-अपने विषय के पेपर वाले दिन विद्यालय में अवश्य उपस्थित रहें ताकि आवश्यकता पड़ने पर छात्रों की सहायता कर सकें। बैठकोपरान्त सभी अध्यापक अपने-अपने कार्यो में व्यस्त हो गए।
किन्तु उसने प्रधानाचार्य से मिलकर स्पष्ट रूप से मना कर दिया कि वह किसी भी कीमत पर नकल नहीं करायेगा। उसका तर्क था कि वह पूर्ण समर्पण, ईमानदारी व निष्टा के साथ पढ़ाता है, वह छात्रों व देश के साथ गद्दारी नहीं कर सकता। प्रधानाचार्य ने निर्देशों का पालन न करने पर सख्त कार्यवाही की चेतावनी दी। यही नहीं उसके अपने निर्णय पर टिके होने के कारण दूसरे दिन ही उसे विद्यालय से निष्कासित कर दिया गया।
वह रास्ते में सोच रहा था, कानून को तोड़ने वालों को अपराधी कहा जाता है। क्या शैक्षिक कानूनों को तोड़कर नकल कराने वाले अध्यापक व प्रधानाचार्य, जो बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, जो राष्ट्र के निर्माता कहे जाते हैं, राष्ट्र को रसातल की ओर ले जा रहे हैं, वास्तव में इन देशद्रोहियों को शिक्षक कहा जाय या अपराधी.
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