सत्यप्रिय केन्द्र सरकार द्वारा संचालित संस्थान में कार्यरत था। उसकी सच बोलने, ईमानदारी, निडरता व निष्ठा से कार्य करने की आदत से उसका बॉस काफी परेशान था। वह समय-समय पर अपने बॉस की अनियमित, जनहित के विरूद्ध व भ्रष्टाचार में लिप्त गतिविधियों की जानकारी उच्चाधिकारियों को देता रहता था। किन्तु उसके द्वारा सप्रमाण की गईं शिकायतों पर भी उच्चाधिकारियों द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई।
उसके सहकर्मी, उसका बॉस और उच्चाधिकारी कई बार उसे समझा चुके थे कि वह व्यावहारिक बने, किन्तु वह चाहकर भी अपने को सुधार न पाया। सच बोलना, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा को छोड़कर अधिकारीनिष्ठ न बन सका।
समय चक्र चलता रहा। वह विभाग का वरिष्ठतम् कर्मचारी हो गया। संस्थान के नियमों के अनुसार चैकों पर हस्ताक्षर करना, भोजनालय व भण्डार की देखभाल, विभिन्न अभिलेखों का प्रमाणन व बॉस की अनुपस्थिति में स्थानापन्न के रूप में संस्था का सुचारू संचालन उसके कर्तव्यों में समाहित हो गया।
वह सत्यनिष्ठा व ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने लगा। संस्थान से होने वाली विभिन्न चोरियां रूक गईं। यहां तक कि बॉस के यहां जाने वाली सामग्री भी प्रत्यक्षत: बन्द हो गई। यह अलग बात थी कि उसके सुनने में आ रहा था कि भोजनालय में कार्यरत कुछ कर्मचारी चोरी-छिपे खाद्य-सामग्री बॉस के घर पहुंचाते हैं। सामान्य धारणा यह थी कि उस पर प्रभार आने पर 70 प्रतिशत चोरियां रूक गईं हैं।
रविवार का दिन था। अवकाश के कारण सत्यप्रिय प्रात: भ्रमण के कारण कुछ देर से निकला था। अपने आवास से निकलते ही उसकी दृश्टि दूर से ही मैस के दरवाजे से निकलते एक मैस कर्मचारी पर पड़ी, जिसके हाथ में एक थैला था। मैस कर्मचारी ने सत्यप्रिय को देखते ही थैला पास की झाड़ियों में छिपा दिया और स्वयं वहां टहलने का नाटक करने लगा। सत्यप्रिय का शक यकीन में बदल गया और भ्रमण पर जाने की अपेक्षा वह उस कर्मचारी के पास गया और झाड़ियों में से थैला निकलवाकर थैला सहित कर्मचारी को स्टोरकीपर के पास ले गया। दो-चार अन्य सहकर्मियों की उपस्थिति में थैले की तलाशी ली गई तो उसमें दूध की दो थैली निकलीं।
पूछताछ करने पर मैस कर्मचारी ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि वह साहब के आदेश से साहब के घर दूध देने जा रहा था। सत्यप्रिय के सहकर्मियों ने सत्यप्रिय को ही समझाया कि साहब के घर पहले भी सामान जाता रहा है। उसके द्वारा उच्चाधिकारियों को शिकायत करने पर भी कोई कार्यवाही नहीं होगी। मैस कर्मचारी को वापस भेज दिया गया। सत्यप्रिय समझ गया, उसके सहकर्मियों में से कोई भी साहब के विरूद्ध गवाही देने को तैयार न था। मजबूरन् वह भी प्रात: भ्रमण पर निकल गया।
दूसरे दिन जब वह कार्यालय पहुंचा, उसके बॉस ने संभागीय कार्यालय से फैक्स पर मंगाया गया निलम्बन आदेश थमाकर उसे कार्यमुक्त कर दिया गया। उसे पता चला कि जो कर्मचारी दूध ले जाते हुए पकड़ा था, उस सहित मैस में कार्यरत सभी कर्मचारियों ने लिखकर दिया है कि वह अपने यहां दूध पहुंचाने के लिए कर्मचारी को मजबूर कर रहा था और उसने मैस कर्मचारियों को गाली-गलोच भी की।
वह मुस्कराकर संभागीय कार्यालय की इस त्वरित कार्यवाही पर विचार करता हुआ अपने अगले गन्तव्य की ओर चल पड़ा।
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