पापी कौन ?
एक बार एक इलाके में सूखा पड़ गया। राजाओं का शासन था, आज-कल की तरह खाद्यान्नो के भण्डार भी नहीं रखे जाते थे। जनता पूर्णत: राजा इन्द्र पर ही निर्भर रहा करती थी। सूखा को देखते हुए लोग चिन्तित होने लगे। राजा भी चिन्तित था। स्थान-स्थान पर वर्षा के लिए यज्ञ किए जाने लगे। बहुत से धर्माचार्य तपस्या करने लगे ताकि इन्द्र खुश होकर वर्षा करे व चारों तरफ खुशहाली आये।
धर्माचार्यो की तपस्या व यज्ञों के प्रभाव से वर्षा होने लगी, किन्तु यह क्या लोग वर्षा से भी परेशान हो गए क्योंकि वर्षा बन्द होने का नाम ही नहीं ले रही थी। मूसलाधार वारिश हो रही थी, स्थिति गंभीर थी। इधर कुँआ उधर खाई वाली कहावत चरितार्थ हो रही थी। सभी परेशान थे, इसी इलाके में धर्माचार्यो का भी एक छोटा-सा गाँव था जो पूरा पानी से घिरा था। गाँव के सभी लोग दुखी थे। गाँव में पंचायत आहूत की गई, जिसमें सभी ने विचार व्यक्त किए कि हमारे बीच अवश्य ही कोई पापी है, जिसके पापों की सजा हम सभी को भुगतनी पड़ रही है, क्यों न ऐसे पापी को ढ़ूढ़ निकाला जाए; अत: सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास हुआ कि गाँव के बाहर जो हनूमान का मन्दिर है, प्रत्येक आदमी उसके दर्शन करने जाय, जो पापी होगा वह वापस न आ सकेगा।
एक-एक करके सभी लोग मिन्दर जाने व आने लगे। उनके बीच में एक ऐसा व्यक्ति भी था जो बीमार था व चलने-फिरने में असमर्थ था( उसने मिन्दर जाने में असमर्थता व्यक्त की, फिर क्या था सभी एक स्वर से चिल्लाने लगे, `अवश्य ही यह पापी होगा´। मजबूरन उस बिचारे को भी लाठी लेकर मिन्दर की तरफ जाना पड़ा। वह गाँव से निकला ही था कि तभी गाँव पर बिजली पड़ी व सम्पूर्ण गाँव नश्ट हो गया। केवल वह अकेला जीवित था व हतप्रभ होकर गाँव की तरफ देख रहा था।
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