दहेज रहित शादी के संकल्प का परिणाम-2

शादी के बाद मनोज ने उसको पढ़ने को मजबूर किया। दसवीं, बारहवीं कराते-कराते ही मनोज को स्पष्ट होने लगा था कि उसने गलती कर दी है। दया और करूणा के आधार पर किसी से शादी नहीं की जा सकती। शादी के लिए गंभीरता पूर्वक समान स्तर, भावों व विचार मिलने पर विचार करने की आवश्यकता पड़ती है। प्रतिदिन होने वाली कलह के प्रभाव से बचाने के लिए उसे डेढ़ वर्ष के बच्चे को अपने माँ-बाप के पास छोड़ना पड़ा। खैर तीन-चार वर्ष साथ रहते हुए मनोज को स्पष्ट हो गया कि पति-पत्नी के रूप में सम्बन्धों का निर्वाह संभव नहीं है।

           मनोज नहीं चाहता था कि जिस स्त्री के साथ पति-पत्नी के रूप में जीवन निर्वाह के बारे में सोचा था, उससे अलग होते हुए दुश्मन बना जाय। वह स्पष्ट रूप से सोचता था कि पति-पत्नी एक-दूसरे के साथ जीने-मरने की कसमें खाते हैं, यदि वे साथ न रह पायें तो एक-दूसरे के दुश्मन क्यों बने? क्यों न समझदारी का परिचय देते हुए बिना किसी पर अदालत में मुकदमेबाजी करते हुए आपसी सहमति से अलग हो जायँ। वह कल्पना नहीं कर पाता था कि एक-दूसरे के साथ नहीं रह पाये तो एक-दूसरे के खून के प्यासे कैसे हो जाते हैं? एक-दूसरे को जेल में भिजवाने के बारे में कैसे सोच सकते है? ऐसा केवल वही सोच सकता है जो केवल हिंसक प्रवृत्तियों को अपने अन्दर छिपाये है।

           सज्जनता और दुष्टता की यहीं से पहचान होती है। जिसने कभी एक क्षण को भी किसी को प्यार किया है, वह उसके खून का प्यासा कैसे हो सकता है? वह उसको किसी भी प्रकार की हानि पहँुचाने या जेल भिजवाने के षडयंत्र कैसे रच सकता है? दूसरे को परेशान करने के लिए ही कोई कार्य करना, जिसे आपने कभी प्रेम का इजहार किया हो, वह कैसा प्यार? इस विचार को अपनी भूत-पूर्व पत्नी को समझाने में मनोज को लगभग पाँच-छह वर्ष लगे। इस दौरान उसकी पत्नी भी एम.ए. कर चुकी थी। जब सुख पूर्वक साथ-साथ रहना संभव न हो। संबंधों में मधुरता के स्थान पर कटुता आ जाय और सभी प्रयास करने के बातजूद संबंधों में सुधार की कोई संभावना न हो, तो आपसी सहमति से अलग हो जाने में ही समझदारी है। यह बात उसकी पत्नी के भी समझ में आ गयी और दोनों ने आपसी बातचीत के द्वारा अलग हो जाने का फैसला किया और तलाक ले लिया।

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दहेज रहित शादी के संकल्प का परिणाम-1

डाॅ.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
मनोज विद्यार्थी जीवन से ही सिद्धांतों के आधार पर जीवन जीने का प्रयास करता रहा था। उसका विचार था कि व्यक्ति को दिखावे का जीवन नहीं जीना चाहिए। प्रदर्शन व दिखावे की प्रवृत्ति ही तनाव को जन्म देती है। व्यक्ति जो कहता है वही करे, जो करता है वही बोले और जैसा है, वैसा दिखे तो उसे तनाव का सामना नहीं करना पड़ेगा। पारदर्शिता व्यक्ति की पवित्रता की सबसे अच्छी व सच्ची कसौटी है। विद्यार्थी जीवन में दहेज के विरोध में अपने मित्रों के साथ विचार-विमर्श होता था। मनोज पर्दा प्रथा के भी खिलाफ था। इसी क्रम में दहेज विरोधी मोर्चा बनाने का भी प्रयास किया था। इसी वैचारिक मन्थन के दौरान अपने एक सहपाठी के साथ ऐसी शादियों में न जाने का संकल्प किया था, जिनमें दहेज का लेन-देन होने की संभावना है या दुल्हन को पर्दा प्रथा पालन करने के लिए मजबूर किए जाने की संभावना है। सामाजिक संगठन में काम करते हुए प्रारंभ में शादी न करने का भी विचार था। समय के साथ काम करने के सिलसिले में जब दूर प्रदेश में था। वहीं एक अनपढ़, विजातीय, विधवा महिला से मुलाकात हुई जो जीवन से निराश हो चुकी थी और एक आश्रम में रह रही थी। मनोज ने उसे पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़े होने के लिए प्रोत्साहित किया। इस कार्य में स्वयं आर्थिक सहयोग देने का भी प्रस्ताव किया। मनोज ने उस महिला से कहा था कि वह उसे वह सभी सुविधाएं देने का प्रयास करेगा जो पढ़ने के लिए अपनी बहन को देने का प्रयास करता है उस महिला को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वह इस उम्र पर पढ़ सकती है और कोई व्यक्ति इस प्रकार लम्बे समय तक आर्थिक सहयोग करता रहेगा। वह महिला असुरक्षा की भावना से घिरी हुई थी। अतः उस महिला ने मनोज के सामने शादी का प्रस्ताव रखा जिसे दया और करूणा जैसी भावनाओं के वशीभूत मनोज ने बिना हित-अनहित व उचित-अनुचित का विचार किए स्वीकार कर लिया।