काश! काली नदी पर न आता

काली नदी

भानपुर एक छोटा सा गाँव था, वह काली नदी के किनारे स्थित था। भानपुर में मछुए लोग रहते थे। गाँव से कुछ दूर एक तालाब भी था। मछुओं का एकमात्र काम मछली पकड़ना था। मछलियों से ही उनकी जीविका चलती थी। भानपुर के मछुए बड़े परेशान थे, क्योंकि गाँव के बाहर जो काली नदी थी, उस पर परियों का अधिकार था वहाँ कोई भी मछुआ मछली पकड़ने नहीं जा सकता था। परियों का डर बना रहता था कि अगर हम काली नदी में मछली पकड़ने गये तो परियां हमें बर्बाद कर देगीं।
भानपुर में ही एक कालू नाम का मछुआ रहता था। उसके परिवार में उसकी एक सुन्दर पत्नी व एक बच्चा था। कालू बड़ा अहंकारी था, उसे अपनी पत्नी की सुन्दरता एवं अपनी ताकत पर घमण्ड था तथा वह काली नदी में ही मछली पकड़ने जाता। वह अपनी पत्नी को हर समय साथ रखता था किन्तु काली नदी पर नहीं ले जाता था।
एक दिन परियों ने मिलकर कालू को सबक सिखाने का निश्चय किया तथा एक बड़ा मगरमच्छ जादू का बनाकर काली नदी में छोड़ दिया। शांय को जब कालू लौट रहा था तो मगरमच्छ ने नाव रोक दी और कालू की तरफ मुँह फाड़कर खाने को लपका, कालू ने अपना भाला उठाया किन्तु मगरमच्छ के विशाल शरीर को देख हक्का बक्का हो गया उसका भाला ऊपर उठा का उठा रह गया। आज कालू सोच रहा था कि मैं काली नदी पर न आता तो अच्छा रहता।

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